देश में लगभग 3 से 4 महीने से किसान भाई प्याज के भाव को लेकर परेशान चल रहे हैं। इसी बीच मशहूर कृषि अर्थशास्त्री देवेंद्र शर्मा जी ने कहा कि स्पेन में कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन से नीचे कृषि उत्पाद खरीदने पर जुर्माना लगता है। जबकि भारत देश में ऐसा कुछ नहीं है। जब तक कृषि उपज के लिए न्यूनतम दाम गारंटी नहीं मिलेगी तब तक हमारे किसान भाइयों का संकट से निकलना मुश्किल है।
पिछले 3 से 4 महीने में किसी भी मंडी ने किसान भाइयों को 10 रुपए से 15 रुपये किलो प्याज का भाव नहीं दिया होगा वहीं दूसरी और महाराष्ट्र में लाखों किसान सिर्फ 1 रुपए से 2 या 5 रुपये तक के भाव पर प्याज बेचने को मजबूर हैं। यह कोई काल्पनिक बात नहीं है कि सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज किसानों की पीड़ा है। किसान तीन से चार महीने में कड़ी मेहनत करके प्याज का उत्पादन करते हैं और व्यापारी उसे एक रुपए में खरीद रहे। इसके बावजूद नाफेड ने कुल उत्पादन का सिर्फ 0.7 फीसदी ही प्याज खरीदा है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2021-22 के दौरान 3 करोड़ 17 मिट्रिक टन से अधिक प्याज होने का अनुमान हैं। जबकि बफर स्टॉक में नाफेड ने केवल 2.5 लाख टन प्याज की ही खरीदी की हैं मतलब नाफेड ने 1 फ़ीसदी भी प्याज नहीं खरीदा हैं। वह भी 11 से 16 रुपये प्रति किलो तक ही दाम दिया हैं। किसान भाइयों का कहना है कि 1 किलो प्याज की उत्पादन लागत 18 रुपये तक हो गई हैं। फिर भी किसानों को उनकी प्याज लागत का भी दाम नहीं दिया जा रहा हैं और नाफेड बफर स्टॉक के लिए प्याज खरीदता है।
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आखिर नाफेड की प्याज खरीदी पर सवाल क्यों उठे
महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के संस्थापक भारत दिघोले जी का कहना है कि पिछले वर्ष नाफेड ने महाराष्ट्र के किसानों को प्याज का दाम 23 रुपये प्रति किलो तक दिया था। आम जनता के लिए पिछले साल के मुकाबले इस साल महंगाई बढ़ गई लेकिन आपको ऐसा नहीं लगता है शायद इसलिए उसने इस बार पहले से कम दाम पर किसानों का प्याज खरीदा है।
भारत दिघोले जी का कहना है कि जब किसानों को लूटना हो तो हर अर्थशास्त्र का नियम बता दिया जाता है जबकि खाद, पानी, बिजली, बीज, कीटनाशक सहित सभी कृषि इनपुट के दामों में लगातार इजाफा हो रहा है। यहां पिछले साल के भाव पर 20 से 25 लाख प्याज अगर नाफेड खरीद लेता तो बाज़ार की तस्वीर बदल जाती हैं और किसानों को अच्छा भाव भी मिल जाता।
हालांकि नाफेड़ के डायरेक्टर अशोक ठाकुर के मुताबिक वर्ष 2014-15 में प्याज का बफर स्टॉक मात्र 2500 से 5000 मिट्रिक टन ही होता था और उनका कहना है कि किसानों से प्याज की इतनी ही खरीदी होती हैं। जबकि अब यह 2.5 लाख मिट्रिक टन हो गया है। नाफेड के पास प्याज रखने की इतनी ही क्षमता है और राज्य सरकार को भी कुछ जिम्मेदारी उठानी चाहिए।
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प्याज भाव में न्यूनतम दाम की गारंटी देना ज़रुरी
मशहूर अर्थशास्त्री देवेंद्र शर्मा जी का कहना है कि कोई सरकारी या सहकारी एजेंसी किसानों से कितनी उपज खरीद रही है यह बड़ा मुद्दा नहीं है। लेकिन किसानों का लिए एक न्यूनतम भाव फिक्स होना चाहिए। अगर कोई भी इस से कम दाम पर खरीदता है तो उस पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए। चाहे वह कोई प्राइवेट सेक्टर हो या कोई एजेंसी हो और वैज्ञानिक तरीके से भी फसलों का कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन निकाला जाए और उस पर मुनाफा तय करके न्यूनतम दाम फिक्स कर दिया जाए।
स्पेन जैसे देशों में कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन से नीचे कृषि उत्पाद खरीदने पर जुर्माना लगता हैं। तो हमारे भारत देश में क्यों नहीं लगाया जाता ? जब तक कृषि उपज पर न्यूनतम दाम की गारंटी नहीं मिलेगी तब तक खेती और किसानों को संकट से कोई नहीं निकाल सकता।
व्यापारियों और सरकार पर भी सवाल उठा
भरत दिघोले जी का कहना है कि हम आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मनाने जा रहे हैं लेकिन आज तक किसी भी सरकार ने प्याज को लेकर कोई नीति नहीं बनाई। महाराष्ट्र राज्य देश में सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य हैं। यहां पूरे भारत का लगभग 40 प्रतिशत प्याज का उत्पादन होता है और लगभग 15 लाख लोग इस खेती से जुड़े हुए हैं। फिर भी पिछले तीन-चार महीनों के बीच प्याज को कौड़ियों के भाव पर बेचना पड़ रहा हैं। आज भंगार का भाव भी प्याज भाव से अधिक मिल रहा हैं।
आज सभी किसान भाई इस लेख को अधिक से अधिक किसान भाइयों तक पहुंचाएं और अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में ज़रुर रखें।
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